भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अकाल / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 10 मार्च 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अकाल
जब आता है
अपने साथ लाता है
अड़ियल बैल से बुरे दिन

अकाल भेद नहीं करता
खेत, पेड़, पशु और आदमी में

बाज की तरह आकाश से उतरता है
हरे-भरे खेतों की छाती पर
फसल को जकड़ता है पंजों में
खेत से खलिहान तक सरकता है

अँधेरे की तरह छा जाता है
लचीली शांत हरी टहनियों पर
पत्तियों की नन्ही हथेलियों पर
बेख़ौफ़ जम जाता है
जड़ तक पहुँचने का मौका ढूँढ़ता है

बोझ की तरह लद जाता है
पुट्ठेदार गठियाए शरीर पर
खिंचते हैं नथुने, फूलता है दम
धीरे-धीरे दिखाता है हाथ, उस्ताद

धुंध की तरह गिरता है
थके हुए उदास पीले चेहरों पर
लोगों की आँखों में उतर आता है
पेट पर हल्ला बोलता है, शैतान

जब भी आता है
लाता है बुरे दिन
काल बन जाता है अकाल

1981 में रचित

लीजिए, अब इस कविता का भोजपुरी में अनुवाद पढ़िए

 अकाल
●●●
अकाल
जाही घरी आवे ला
अपना संगे लावेला
अड़ियल बरधा से बिगड़ल दिन

अकाल फरक ना करेला
बधार,माल मवेसी,बिरीछ,मानुख् में

बाज दाखिल असमान से उतरेला
लहलहात खेतन के छाती पर
फसिल के जकड़ेला पनजवन में
खेत से खरिहान ले सरकेला

अँधियार नीअर मड़ला जाला
लचकत चुप हरिअर डनटियन पर
पत्तवन के नान्ह हथेलियन पर
निडर जम जाला
जरीअन ले पहुँचे के मउका खोजेला

बोझा जस लदा जाला
पुट्ठादार गठियाइंल देही पर
खिंचेलन स नथुना,फुलेला दम
धीमे-धीमे देखावेला हाथ,उस्ताद

कुहा जइसन गिरेला
थाकल, मुरझाइल,पीअराइंल मुखन पर
लोगन के आँखिन में उतर जाला
पेट पर हल्ला बोलेला,सयतान

जे घरीओ आवेला
लावेला बिगड़ल दिन
काल बन जाला अकाल

भोजपुरी में अनुवाद जगदीश नलिन द्वारा