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रिश्ते-6 / निर्मल विक्रम

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रिश्ते कभी
अपने-बेगाने
दूर-नज़दीक के नाम ढूंढ़ते हैं
जिस्म का ताप कभी ठंडा नहीं होता
कलेजे में धड़कती है लालसा
प्रेमी मृग बन कर
आँखों में ढलकते
ख़ून के मोती
जब कभी ख़ुमार बन कर उतर आते हैं
तभी किसी संदली सुबह
नीले आकाश में उड़ने को
फड़फड़ाते
बंद अंधेरी कोठरी में
बेनाम रिश्ते

मूल डोगरी से अनुवाद : पद्मा सचदेव