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रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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टेबल माथै बैठ्यो चांद
छेड़तो कलम
पूछ बैठ्यो—
कद लिखसो
थे म्हारा गीत?
चांदणी रो संगीत
मौन रा छंद
पेमलिया बंध।
हम्मऽऽ
म्हारी कविता में आवण सारू
थांनै बळणो पड़सी
तपणो-सुळगणो पड़सी
कांई थे हुय सकोला लाल
सुळझाय सकोला—भूख रा सवाल?
म्हारी कलम फगत
साच रो रूमान रचै है
इणी सारू लोगां रै चुभै है।
तद सूं रूस्योड़ो चांद
पसर्यो पड़्यो है टेबल पर
कलम रै पसवाड़ै।