भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पूर्णविराम / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 5 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अम्मां, अपनी गली में है एक छेड़ूराम
आज धर दिया मैंने धप्पा
भागा करता पप्पा पप्पा
मैं भी गाती लारालप्पा
दे कर आई उसको अच्छा -सा इनाम.
छोटी हूँ पर इतनी भी ना
सुनूँ मनचलों की, बोलूँ ना
आना जाना मैं रोकूँ ना
आए-गए बिना चलता है किसका काम?
भैया, भैया, बोलो उनको
फिर भी समझ न आए उनको
गुस्सा है अब बहुत अपुन को
कोमा से तो भला, लगा दूँ पूर्णविराम !