भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साफ़-साफ़ / अष्टभुजा शुक्ल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:02, 14 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अष्टभुजा शुक्ल }} जो रोशनी में खड़े होते हैं व...)
जो रोशनी में खड़े होते हैं वे
अंधेरे में खड़े लोगों को
तो देख भी नहीं सकते
लेकिन अंधेरे के खड़े लोग
रोशनी में खड़े लोगों को
देखते रहते हैं साफ़-साफ़ ।