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गुमराह / नवीन दवे मनावत
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बहती हुई नदी
अगर गुमराह होकर
छोड़ दे अपना रास्ता
तो अधूरा रह जाएगा
समुद्र का इंतजार!
तब दर्द भरी आह!
से बोलेगा समुद्र
कि भटकना ही जानती है।
पेड़ अगर गुमराह होकर
बन जाए हठी
तो कभी नहीं लद पाएगा फलों से
न दे पाएगा कभी छांव
और न पनपा सकता कभी
बीज आगामी पीढी़ के लिए!
सूरज गुमराह होकर
छोड़ दे तपना
तो हर छोर में वर्चस्व हो जाएगा
अंधेरी रातों का!
और
धरती घूूमना बंद कर दे
तो रूक जाएगी
आदमी के भीतर की गतिशीलता
गुमराह होकर
यथार्थ की लीक छोड़ना
आदमी के हक में है
जो बनता है विनाश का हेतु
आदमी की अधैर्यता और
विचलित होने की आदत
बनाती है गुमराह की परिभाषा
जो बाहर से भीतर तक
नहीं छोड़ना चाहती है
उसके अंत को