नीम / चित्रा पंवार
धरा के आंचल में दुबका
नन्हा-सा मन
चुपचाप सो रहा था
कि अचानक बूंदों ने उसके माथे पर दस्तक दी
टप टप
उसने आँखें खोली
एक हाथ हवा में हिला दिया
उसने सूरज के लट्टू को देखा
उसे पकड़ने की चाह में एड़ी उचका कर ओर ऊंचा हुआ
पास से गुजरती हवा ने उसकी मुलायम देह पर गुदगुदी की
वह बांह पसार कर हंसने लगा
यह देख
दूर खड़ा बूढ़ा पीपल मुसकुराया
खुश रहो, हंसते रहो
मेरे बच्चे
वह खुश रहा, हंसता रहा
दुनिया उसे गुड़ की डली-सी लगी
वह उसकी मिठास से भर गया
उम्र की सीढ़ी पर चढ़कर
वह चांद तारों से बातें करता
तीसरे बसंत तक आते आते
हवा, बारिश में लचलचाती उसकी लचकदार कमर
गोल और मजबूत होने लगी
पत्तों से लकदक भरी सुडौल शाखाएँ पक्षियों को नीड़ निर्माण का निमंत्रण देने लगीं
जब उसके तने से लिपटे दो हाथ कुछ देर यूं ही आपस में उलझे रहे
उस दिन उसने पहली बार प्रेम को महसूस किया
वह पीड़ा में भी खुश हुआ
जब मदनू नाई के लड़के ने असलम दर्जी की लड़की के नाम का पहला अक्षर उसकी देह पर कुरेदा
आसमान की ओर सीधी बढ़ रही अपनी शाखाओं को
उसने धरती के समानांतर बिछा कर
लड़कियों को पुकारा
आओ मेरी बच्चियों!
झूला डालो, गीत गाओ!
जब बच्चे बंदर बने उसकी बिछी डालों पर उछल कूद करते
वह महसूस करता अपना चलना, कूदना, नाचना
उसकी छांव में न जाने कितने मंडप सजे
मंगलगीत गाए गए
वह सोचता सब कुछ फूल-सा सुंदर है
और इत्र-सा सुगंधित
दिनों दिन
वह बढ़ रहा था
घना हो रहा था
शाखाएँ और समझ दोनों पक रही थीं
पहले उसने फूलों का सौंदर्य ही निहारा था
उनका नोचा, रौंदा जाना अब समझा रहा था
वास्तव में इत्र फूलों का रस नहीं आंसू थे
एक दिन उसके नीचे पंचायत बैठी
जमींदार का आरोप था नौकर ने गुड चुरा कर खाया है
पंचों ने फैसला सुनाया
नौकर को खाने का इतना ही शौक है
इसलिए उसे जमींदार के जूते खिलाए जाएँ
गरीब की भूख दया की नहीं दंड की पात्र होती है
वह भूख का भेद देखकर हक्का बक्का
मौन हुआ सब देखता रहा
जिस तने से लिपटा करता था कभी प्रेम
उसी तने से बाँध कर मारी गई निर्वस्त्र विधवा
वह डबडबाई आँख लिए सोचता रहा
स्त्री विधवा हो कर चुड़ैल बन जाती है
पुरुष क्या बनते होंगे?
जिस डाल को झुका कर उसने लड़कियों को
झूला डाल गीत गाने का निमंत्रण दिया था
किसी सुबह उसी पर झूलती मिली उनकी लाश
वह निरा अकेला और दुखी रहने लगा
मिठास के भ्रम से भरी दुनिया के असली स्वाद से
नीम का मुंह कड़वा हो गया॥