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माँ / राम नाथ बेख़बर
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हर शाम को माँ
आँटा गूँदते हुए
गूँद देती है
अपनी सारी अभिलाषाएं
काटते हुए सब्जी
काट देती है वो
अपने तमाम
दुःख- दर्द
जलते तवे पर
वो जला देती है
अपनी जिंदगी के
तमाम गिले-शिकवे
बर्तन धोते वक़्त
धो देती है वो
अपने मन के
समस्त घाव
घर की बुहारन के साथ
बुहार फेंकती है वो
चुन-चुनकर
घर की तमाम बुराईयाँ।