भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठ की हो न जाए फ़तह आज फिर / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:03, 23 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
झूठ की हो न जाए फ़तह आज फिर
देखना, सच को सच की तरह आज फिर
ख़ून की प्यासी रातें प्रतीक्षा में हैं
डूब जाए नहीं यह सुबह आज फिर
इश्क़ की इससे बेहतर वजह क्या कहूँ
याद तुमको किया बेवजह आज फिर
क्या हुआ गर ज़ुबां पर हैं पाबंदियाँ
दिल की बातें तू आँखों से कह आज फिर
घर के आँगन में दीवार होगी खड़ी
डाह करने लगी है कलह आज फिर
दे रही हमको क़ुदरत भी पैग़ाम कुछ
यूँ ही डोली नहीं है सतह आज फिर
साँप सड़कों पे बेछुट निकल आए हैं
नेवलों से हुई क्या सुलह आज फिर
भेड़िये जीत के मद में मदहोश हैं
मेमनों की लिखी है जिबह आज फिर
शांति कैसे उसे बातें समझाएगी
युद्ध करने लगा है जिरह आज फिर