बैकअप / केतन यादव
स्मृतियाँ तुम्हारे प्रेम की क्षतिपूर्ति स्वरूप मिलीं
जो तुम्हारे होने का भ्रम बनाए रखती हैं सदा ।
बाँट लेता हूँ तुम्हारी अनुपस्थिति फेसबुक, इंस्टाग्राम से
हर स्क्रोल में दिख जाता है हमारा साथ बिखरा पड़ा रील्स दर रील्स,
मोबाइल के की-पैड पहचानते हैं तुम्हारा नाम
एक अक्षर टाइप होते ही पहुँचा देते हैं संवाद के आख़िरी शब्द तक,
जिसे यह सदी कहती है ऑटोसजेशन
वह तुम्हारी स्मृतियों का मशीनी षड्यंत्रभर है।
याद रहती हो तुम
उन अनगिन पासवर्डों सी
जिसे बदलने की चेष्टा में
गुजरना होगा मुझे
तुम्हारे साथ के सभी तारीख़ों से ।
सुबह-सुबह अपना पहला चेहरा शीशे में देखते ही
जैसे ऑन हो जाता हो कोई वीडियो कॉल
अनछुए स्पर्श की कचोट से भर जाता है पूरा वातावरण ।
मन की सीक्रेट गैलरी में तुम्हारी कितनी ही तस्वीरें सुरक्षित रहीं
जिनके पास नहीं है विकल्प शिफ्ट प्लस डिलीट का,
प्रेम स्मृतियों का बैकअप है
कभी जो करप्ट हुआ कोई किस्सा
तो एक सिरा छूते ही खुल जाती है पूरी कहानी ।