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आत्मावलंबन / नीना सिन्हा

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उसने कहा
क्या नाज़ है?
मैंने कहा
हाँ बेशक!

चेहरे का रंग बदल जाता है
आँखों की पुतलियाँ धूमिल हो जाती हैं

नहीं बदलता
तो, मन का शफ्फाक रंग
बहता है निष्कलंक
गंगा की तरह

खनखनाता है
कौड़ियों की तरह

वही सत्य है
वही सुंदर
सौंदर्य आत्मावलंबन में है
हार जाने में नहीं!