महाराणा प्रताप / विश्राम राठोड़
हल्दी घाटी समर नहीं, यह इतिहासों की गाथा है
वो मेवाड़ नरेश नहीं अपितु वह भी भारत भाग्य विधाता है
धन्य हैं वह जगत जननी, धन्य हैं वह क्षत्राणी हैं
स्वाभिमान के लिए अमर हो गई वह ही मात भवानी हैं
उस युग पुरुष की गौरवगाथा, हम सब नित्य वंदन करते हैं
अभिनंदन है उस हल्दीघाटी का, जिसका हम नित्य वंदन करते हैं
मेवाड़ प्रदेश शुरों की ही नहीं, क्षत्राणियों की कुल भूमि है
यह वीर पुरुष महाराणा जय गानों की यह भूमि है
आओ नमन करें जय हिंद से जयकार करें
वन्दे मातरम् की मोती से, जन गन मन तक शंखनाद करें
उस वीर पुरुष की गौरवगाथा का चहुँ ओर जयकार करें
इतिहासों की गौरवगाथा का फिर से जयगान करें
स्वामि भक्ति के स्वरों का मंगलगान करें
चहुँ ओर से यह ललकारा, शंखनाद होगा
कोई मेवाड़ का भीष्म बनेगा
कोई मेवाड़ का कर्ण बनके दिखलाएगा
उस युगपुरुष की गौरवगाथा को अम्बर तक ले जायेगा
हर घर से चेतक निकलेगा
गज रामप्रसाद भी अब चमकेगा
असुरों की अब मायाजाल
पथ पतन नभ-पाताल में दिखेगा
हे वीर पुरुष तुम भी शंखनाद करो
अर्जुन दल से खल-बल दिखेगा
तुम बनों कर्ण सरताज़ वही
नभ में दम्भ भी गूंजेगा
कब तक दुश्मनों को माफ़ करें
कब तक अत्याचार का इंतज़ार करें
हम सब महाराणा के वशंज है
एक हाथ में भाला लो दूसरे हाथ तलवारों से जयकार करें
आओ आज फिर धरती पर बिछोना है
आकाश ही हमारी छत होगी
कल आज फिर कल में हमारा क्या खोना हैं
हे वीर पुरुष हुकांर भरो
दुश्मनों का सर्वनाश करों