त्रिपिंड दान / दीपा मिश्रा
ओहि पीयर अभागल फूलक कौन दोष
जे मधुमासमे सेहो अनछुअल रहि गेल
जीवन पर्यन्त मात्र घृणा बटोरैत
अपन होएबाक निरर्थकताक शोक मनबैत
अपनाआपकेँ अपनहि बहिष्कृत घोषित क' देलक
ऋतु अपन विपन्नता पर हतप्रभ भेल कहैये
कतेक रचना हमर व्यर्थ रहल
ओकरा होएबा नहि होएबासँ
ककरा कौन अंतर पड़ितै !
जे स्वर्गसँ पृथ्वी धरि ककरो नहि स्वीकार्य
ओकरा गढ़बाक एतेक आतुरता किएक?
अप्सरा सब ओकरा दिसि देख
उपहास कएलक
प्रेयसी सबहक वेणीमे कहिओ नहि गुहाएल
कहिओ कोनो कविक रचनामे ओकरा समाहित करबाक परंपरा नहि रहल
देवताक मन्दिरो सँ ओ सदिखन अछूते रहल
किन्तु यातनाकेँ सहितो ओ याचक नहि
भले किओ ओकरा पितर मानि दान नहि करे
अपन महत्ताकेँ सिद्ध करबाक संकल्प लेने
अवचेतन मनक तारकेँ झंकृत करैत
ओ टूटिके खसैये शिप्राक धार पर
नदीक जलकेँ स्पर्श क' आँखिसँ लगबैये
अपना आपकेँ तर्पण दैत मुक्ति हेतु करैये अपनहि त्रिपिंड दान