भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेपर-लीक / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:01, 24 दिसम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जैसे-तैसे फार्म भरा था
मेहनत भी की ठीक
मगर सामने आया मुद्दा
फिर से ‘पेपर-लीक’
मुनिया ने माँ-बाबा के
मन में भर कर विश्वास
ख़ूब करी थी मेहनत
होना ही था उसको पास
लेकिन छूट गयी फिर गाड़ी
आयी ज्यों नज़दीक
होगी पुन: परीक्षा लेकिन
उम्र रही है बीत
उसपर शादी का दबाव
सपनों को करता पीत
कैसे सुलझाएगी सबकुछ
पता नहीं तकनीक
सोच रही है बिना नौकरी
कैसे कर ले ब्याह
अपने हाथों पढ़ा-लिखा
सब कैसे करे तबाह
लेकिन कौन सुनेगा उसकी
कौन करे तस्दीक?