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आइए / अशोक तिवारी

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आइए



आइए-आइए
ध्यान से आइए
सँभल के-देखभाल के आइए
जल्दी जल्दी आइए
मौक़ा न गँवाइए
और पाइए हर तरह की ट्रेनिंग
लुटने - लूटने की
पिटने - पीटने की
जोड़ने - तोड़ने की
मरने - मारने की
खाने - खिलाने की
आने - जाने की
वहां पर जाने की
जहां पर पहुँचने के लिए
तरसते-तरसते बुढ़िया जाते हैं लोग

आइए कि आपके
पुर्जों में लग गया है जंग
आइए कि आपके
विचारों में लग गया है
सोच का कीड़ा
आइए कि
आप सम से करना चाहते हैं तब्दील
विषम को
और मानते हैं कि
बदल जाएगी दुनिया एक दिन
ऐसे किसी भी फितूर को
करने के लिए दूर आइए
और आकर अपने आपको सुरक्षित पाइए

आइए
और सत्तर सालों बाद
अपने आपको वहां पाइए
जहां आप अपने आपको
देशभक्ति की चासनी में डुबा पाएँ

आइए और पाइए
चेहरे पर मुस्कान
मुस्कान में मिठास
और वाणी में संयम
संयम में इशारे
इशारों में धमकी
धमकी में तारीख़
तारीख़ में तवारीख़
और देखिए
एक पूरी आबादी को
तब्दील होते हुए
तवारीख़ के एक-एक हिज्ज़े में

आइए
और समय के अंतिम पल को
अपने अंतिम छोर पर ठहरा हुआ देखिए
जो कंप-कंपाकर आगोश में ले लेगा
सैकड़ों-हज़ारों उन जानों को
जो आपकी तरह
न जीना जानती हैं
न जीना चाहती हैं

इसलिए कहता हूं
कि आइए और सदस्यता पाइए
बिल्कुल फ़्री
वो सब जो
गांधी के बंदरों की तरह
कर सकें अपने कान बंद
आंख बंद करके जीने को जो हों अभ्यस्त
सील कर सकें अपने मुँह को
बंद मुट्ठी को न खोलने का
कर सके जो लगातार अभ्यास
वही शख़्स आए हमारे पास....!!