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मैं स्वयंसिद्धा / संतोष श्रीवास्तव
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मैं चिंगारी नहीं
दहके अलाव दिल में रखती हूँ
कलम से आसमाँ पे
इंकलाबी गीत लिखती हूँ
अमन औ चैन के पैगाम
अपने साथ रखती हूँ
अंधेरे जुगनुओं को साथ रख के
पार कर डाले
कदम के ज़ख़्मों से
अब दोस्ताना ख़ूब रखती हूँ
बिखर जाना मेरा इतिहास था
यह कैसे समझाऊँ
पर अब ख़ुद भी सँवरती हूँ
कि औरों को भी सँवार लेती हूँ
मैं स्वयंसिद्धा हूँ
अपने ग़म को ढोती
मुस्कुराती हूँ