भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोरोना-3 / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:01, 30 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अब हुक्मरानों का
वश नहीं रहा
प्रजा को उनके हाल पर
छोड़ कर ऐलान कर दिया
कि कोरोना के साथ
जीने की आदत डालो
जीने की आदत ?
उपहास
एक अदद
जीवन का उपहास
जो पलायन के लिए
मजबूर है
भूखे पेट ,नंगे पांव
45 डिग्री तापमान में
झुलसता, मरता
उसके लिए यह
उपहास नहीं तो और
क्या है मेरे आका
तुम
जो सुरक्षा चक्रों में बैठे हो
और यह भी जानते होगे
तुमने मौत के दरवाज़े
खोल दिए हैं यह कहकर