भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इमारतें / तुलसी रमण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:30, 14 जनवरी 2009 का अवतरण ("इमारतें / तुलसी रमण" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop])

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माना ऊँची
बहुत ऊँची
बन रही हैं इमारतें
आसमान को छूती हुई
लेकिन हरेक की
नींव रखने के साथ ही
मिट्टी में धँसी हुईं
आस-पास उगी हैं
अनेक झुग्गियाँ
जिनके बिना
कुछ भी नहीं
ये इमारतें।