भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ूबसूरत डर / ध्रुव शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:13, 14 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव शुक्ल |संग्रह=खोजो तो बेटी पापा कहाँ हैं / ...)
अनन्त शून्य को भरता है
एक ख़ूबसूरत डर
जो मेरी साँस है
उड़ा देगी मेरा घर
ज़रूरी आग
जिसके लिए लड़ता हूँ
रोज़ जलाती है मुझेर
बहा के मुझ को
कहीं छोड़े
चाहे तो मेरा दम ले ले
वही तो है
जो मेरी प्यास बुझा सकती है
ख़ूब जमाता हूँ
जहाँ अपने पैर
उसी में ऎसे समाता हूँ
कि हूँ कि नहीं