भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रातः / ओमप्रकाश सारस्वत
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:23, 15 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत |संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओम ...)
प्रात हुई
घाटी की
कुण्डलिनी जागी
माथे पे दमका
सहस्त्रार
वसुधा ने महसूसा
शक्तिपात
संज्ञा ने पाया
आकार
चिड़ियों ने
नाचा
कुचिपुड़ि
दस्तक दे
आंगन के द्वार
दूब ने
हल्की की
आँखें
धूप ने
चूमा जब बार-बार
पेड़ों ने
तान दिए
साए
पत्तों ने छेड़ दी
गिटार
जगती ने
किया फिर हाथ जोड़
ज्योति के
मूल को नमस्कार