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नेकांत / त्रिनेत्र जोशी
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बादलों के बीच
आँखों के जोड़े
हंसों की तरह चलते हैं
गिरती है एक बूँद
आँगन में
सिहरते हैं पत्ते
एक लम्बी उदासी के बाद
फिसलती है एक चट्टान
बेहद अँधेरी रात में
झींगुरों की रुनझुन के साथ
आता है गन्ध का एक झोंका
आसमान के उस पार
बिगड़ैल नदी का है शोर
शहर में
बुझ गई हैं
लाल, हरी पीली बत्तियाँ
बादलों के बीच
कड़कती है आवाज़
अकेलेपन में भी बेहद है शोर!