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दाने / केदारनाथ सिंह
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नहीं
हम मण्डी नहीं जाएंगे
खलिहान से उठते हुए
कहते हैं दाने॔
जाएंगे तो फिर लौटकर नहीं आएंगे
जाते- जाते
कहते जाते हैं दाने
अगर लौट कर आये भी
तो तुम हमे पहचान नहीं पाओगे
अपनी अन्तिम चिट्ठी में
लिख भेजते हैं दाने
इसके बाद महीनों तक
बस्ती में
कोई चिट्ठी नहीं आती।
रचनाकाल : 1984