भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुश्किल / नवीन सागर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 19 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्बी रात / नवीन सागर }}...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहीं जाने के लिए
लौटना पड़ता है
नहीं लौट पाते पर जाते हैं ।

जगहें बदलते हैं
और लौट कर समझ में नहीं आता
कहाँ लौटें !

बाहर रह जाते हैं
भीतर रह जाते हैं ।