भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गंगाजल / शशि सहगल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:24, 24 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |संग्रह= }} <Poem> आरती के असंख्य दिये गंगा क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आरती के असंख्य दिये
गंगा का झिलमिल जल
नहीं हरिया सकता मन
उसे तो चाहिए
मुस्कान की
एक नन्हीं किरण