भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहाड़-2 / दीनू कश्यप
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:05, 28 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनू कश्यप |संग्रह= }} <Poem> चल रही हैं उस पर कुल्हाड...)
चल रही हैं उस पर
कुल्हाड़ियाँ--
कुदालियाँ निरन्तर
हमलावरों के बर-अक्स
खड़ा होता है
सीने को सख़्त किए
वज्र चट्टान-सा
लेकिन जब
अपना ही कोई हाथ
डाइनामाइट को
लगाता है पलीता
तो मार्मिक हो कराहता है
घायल, बेबस और आसान
होते जाने की पीड़ा से
फूटती हैं धाराएँ
जन्म देती हुई
एक और क्रोधित नाले को।