भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ जा व्रजपति के परम दुलारे! माखन तुम्हें खिलाऊँगी / प्रेम नारायण 'पंकिल'

Kavita Kosh से
218.248.67.35 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:04, 2 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल' |संग्रह= }} Category:कविता <poem> आ जा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आ जा व्रजपति के परम दुलारे! माखन तुम्हें खिलाऊँगी।
आ मेरे नयनों के तारे! मैं चरण-कमल सहलाऊँगी।
कब से हैं तरस रही आँखे मैं बुला-बुलाकर हारी हूँ।
आँचल फैलाये दरस-भीख माँगती निरीह भिखारी हूँ।
हे राधा-आराधनवारे आ, हिय-रस तुम्हें पिला पाऊँ।
आ मिलो प्रेम-मतवारे! मैं तेरे उर-बीच समा जाऊँ।
आ यशुमति के वारे! विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥147॥