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दोस्त / बहादुर पटेल

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दोस्त! तुम्हारा जो यह दोस्ती का ढंग है
यह तुम जो मेरे साथ
मित्रता का बर्ताव करते हो

सचमुच तुम्हारे भीतर यह जो लावा है
धीरे-धीरे मुझे पिघलाता जा रहा है
इसके बाद यह जो धातु का रेला
तुम्हारी ओर बढ़ता है
इसके पीछे जो निशान है
वे आज तक मेरे हृदय पर मौज़ूद हैं

दोस्त! कितना कठिन होता है
जीवन में बिना किसी मित्र के एक
क़दम उठाना
ये दोस्ती भी अजब चीज़ होती है
इसके भीतर जो गीलापन है
उसमें भीगते रहते हैं हम
और वह धीरे-धीरे हमें करता रहता है ख़त्म

कभी हम दोस्ती के नाम से जाने जाएँ
और ज़बरदस्त यारी के
ज़बरदस्त दुश्मनी में भी
दोस्ती ही बनी र्हे पहचान हमेशा
तो दोस्त एक भी दोस्ती के हक़ में
एक बात तो है ही।