भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंत में / मोहन राणा

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:47, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बंद कर देता हूँ

अपने को सुनना

कानों से हाथों को हटाकर

बंद कर देता हूँ

कुछ कहना

शुरू करता हूँ

जानना

बिना किताबों के

बिना उपदेशों के

बिना दिशा सूचक के

बिना मार्गदर्शक के

बिना नक्शे के

बिना ईश्वर के

बस जानना


25.10.2004