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पत्ते / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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शीत की सताई दुनिया में
दबे पाँव आते हैं पत्ते
सस्नेह हमारी पीठें
हौले से थपथपाते
थमाते बसंत का तोहफ़ा
खुशख़बरियाँ सुनाते
लौटाते आबरू
नंगी बनस्पतियों की

पत्तों का प्रवेश
हमारी ठिठुरनों में
अँगड़ाइयों का प्रवेश है
रंगों का समावेश
बेरंग उदास आँखों में

पत्ते झरते हैं
पृथ्वी के आभाव
भरते हैं

पत्तों का जाना
हमारे चूल्हों से
गीली लड़कियों का सुलग जाना है
हमारी माँओ का
धूँएं की क़ैद से मुक्त हो जाना
पत्तों का आवागमन
हमारी कठिनाएयों में
बराबर मदद का वचन है