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हमारा दिल / बशीर बद्र

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कवि: बशीर बद्र

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हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए ।

चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए ।


मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ,

कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए ।


अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर,

मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए ।


समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको,

हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए ।

मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा,

परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए ।


उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,

न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए ।