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नदी / सुदर्शन वशिष्ठ
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पर्वत का नाम पड़ाव
नदी का बहाव
पर्वत रहे स्थिर
चल न पाए
नदी, पानी की रवानगी
नदी, बर्फ की बेगानगी
पर्वत, बेशक बड़ा विशाल
पिता समान
नदी पुत्री नन्ही
मिला जिसे चलने का शाप
पर्वत के नहीं होते पाँव
नदी का नहीं कोई ठाँव
नदी जोड़ती पर्वत को
समुद्र से
एक संदेश बहता रहता
कुछ न कुछ कहता रहता
पर्वत की बात समुद्र तक
पहुँचाता रहता
आदमी में आदमी की पहचान हो सकती है
पानी में पानी की पहचान मुमकिन नहीं।