भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिट्टी-2 / अमिता प्रजापति

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:15, 19 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमिता प्रजापति |संग्रह= }} Category:कविताएँ <Poem> जब मान...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब माना है
ख़ुद को मिट्टी
तो सहना होगा जड़ों का उलझाव
साधना होगा पेड़ को भी
भेजना होगा जीवन का सत्व
पेड़ की शिराओं तक
सूरज का क्या है
आज चमका कल न चमका
पर तुम्हारी शिथिलता क्या उचित है
जब तुम बुलाओगी धरती बन आकाश को
वो भी दौड़ा चला आएगा बरसने को
तो जब मिट्टी हो
फिर यह ऎंठन कैसी
अपनी लोच कायम रखो
बनाए रखो अपना सौंधापन