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मृत्यु-5 / शुभाशीष चक्रवर्ती
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शाम का भय फैल रहा है
अकेले कमरे से
मैं भाग रहा हू‘ं
सूर्य का प्रकाश
उस छोर तक पहुँचकर
लौट रहा है
संयम शरीर छोड़ रहा है
तुम फिर याद आ रही हो