भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महकी बेला / नचिकेता

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:34, 11 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंशु मालवीय }} <poem> महकी बेला नागफनी से बिंधकर भी म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महकी बेला
नागफनी से
बिंधकर भी महकी बेला

तेज धूप है
चलती गर्म हवा भी है
पर, इसकी परवाह न इसे
जरा भी है
हरसिंगार से
आंख मिला टहकी बेला
घाम, गीत
वर्षा का डर है इसे नहीं
गीतों जैसा हासिल
स्वर है इसे नहीं
पंख बिना भी
चढ़ छत पर चहकी बेला

खुशबु इसकी
दबे पांव आती घर में
रच देती आसंग आंख के
काजर में
फिर भी ढूंढ
नहीं पायी गंहकी बेला