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बुनकर-1 / प्रेमचन्द गांधी

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मकड़ियों से सीखी हमने
बुनाई की कला और वैसा ही धैर्य
कपास के बैंगनी फूलों को हमने
गर्भस्थ शिशु की तरह दुलराया
पक कर जब चटक जाते रूईफल
हमने दाई की तरह सम्हाला उन्हें
चरखे पर कातकर हमने
बना लिए
चांद जैसे गोले धागों के
धरती पर गाड़ी खूंटियाँ
शुरू हो गया ताना-बाना
यूँ धरती को ओढ़ायी हमने पहली चादर तारों की
हमारे हाथों और अंगुलियों के कौशल से बनकर
निकला जब पहला कपड़ा
इंसान को जीने का शऊर आया