भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रागानल / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:38, 7 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''रागानल''' रागानल दृग्-परि...)
रागानल
रागानल
दृग्-परिसर में
भर-भर उमड़ा है,
उखड़ गई
संशय की शूलें
प्रबल वेग से,
शुष्क-तृणों-तल पसरा
हरित-क्रांति का अंकुर
प्राण मधुर
औ’ हास
मधुपूरित
घन-दल-तल।
ऊष्मित मारुत
उमड़ पड़ा है
उमड़े हैं संवेग
वेग से
दीप्त झंझा के।
झोंपड़ में
टप-टप
बरसा है
रागानल
घन बनकर
मुक्ता।
अभिनंदन
अ-काल की
शीतल जलधारा का।