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पतझर-१ / कविता वाचक्नवी
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पतझर - १
नहीं सुनहले पंखों की
चिड़िया
गाती है
नहीं गिलहरी
हाथ उठाए
अब आती है
कोयल की
अमराई सारी
सूख गई
छाँह उंगलियाँ थाम
नहीं अब
चल पाती है।