भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 21 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''धरती''' यह धरती कितना बोएगी ...)
धरती
यह धरती
कितना बोएगी
अपने भीतर
बीज तुम्हारे
बिना खाद पानी रखाव के?
सिर पर सम्मुख
जलता सूरज
भभक रहा है
लपटों में घिर देह बचाती
पृथ्वी का हरियाला आँचल
झुलस गया है
चीत्कार पर नहीं करेगी
इसे विधाता ने रच डाला था
सहने को
भला-बुरा सब
खेल-खेल में अनायास ही,
केवल सब को
सब देने को।