भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सीढ़ी / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 27 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''सीढ़ी''' सीढ़ी........ पुरानी पड...)
सीढ़ी
सीढ़ी........
पुरानी पड़ चुकी
गोलाईदार डंडों की नस-नस
उभरी......उखड़ी.....सी
सपाट दीवारों (सहारों?) पर टिका
एक से दूसरे तल जाते
पाँवों की हड़बड़ी।
आँखें
कभी ऊपर कभी नीचे
टिकाए लोग
बरसों बरस मीलों मापते
चुक जाएँगे।
बदरंग बाँस की सीढ़ी!
आवाज़ तो दो,
चेताओ तो.......!
चरमराओ तो.......!!!