भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बूढ़ा शेर / विमल कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:28, 20 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल कुमार |संग्रह=यह मुखौटा किसका है / विमल कुम...)
यह सुनकर वे मन ही मन हँसे
कि वे मूर्ख हैं
यह सुनकर उन्होंने अनसुना कर दिया
अनसुना कर दिया
कि उन्हें कुछ नहीं आता
यह सुनकर वे उदास हो गए
कि उनकी पीठ झुक रही है, कहते हैं
कि फूट-फूट कर रोने लगे थे
जब लोगों ने कहा-
वे सर्कस के बूढ़े शेर हैं