भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग (तीन) / विष्णु नागर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 25 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=संसार बदल जाएगा / विष्णु नाग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस आग को बुझाता हूँ
उसी आग को बुझाता हूँ

आग से तो मेरा ऐसा रिश्ता है

आग से तो
मैंने रोटी सेंक ली
आग से तो
मैंने कपड़े बचा लिए
आग से तो
मैंने बच्चे को डरा दिया

आग से तो मेरा ऐसा ही रिश्ता है

आग
कहीं लगी तो नहीं?