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बड़े मुस्कुराए / प्रेम भारद्वाज
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बड़े मुस्कुराए
कई ग़म छुपाए
न जब हाल पूछा
न सपने सुनाए
न शिकवा किसी से
न पीड़ा न हाए
जो तैराक डूबे
उसे क्या बचाए
जमेगी भी महफिल
ज़रा प्रेम छाए