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अभिलाषा / इला प्रसाद
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मैं सप्त सुरों में गाऊँ
एक सुर आँखों से बहे
आकुल मन की व्यथा कहे
आँखों में उतर जाए
एक सुर अधरों से झरे
तरल शीतल सुधा-धार
कानों में अमृत भरे
एक सुर हाथ रचें
कर्मों के तार बजें
गूँजे संसार
मन की भाषा मन कहे
मनों को दुलराता रहे
अनाहत-रव बजे
स्पंदित हों प्राण
सिर्फ़ बैखरी नहीं
मध्यमा और पश्यंती की
वाणी भी गूँजे
पूरा हो सुर-संसार