भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:43, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: बशीर बद्र

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो
अजनबी जैसे अजनबी तुम हो

अब कोई आरज़ू नहीं बाकी
जुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो

मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी तुम हो

दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो