भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महारथी / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:02, 15 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र }} <poem> झूठ आज से नहीं अनन्त काल ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झूठ आज से नहीं
अनन्त काल से
रथ पर सवार है
और सच चल रहा है
पाँव-पाँव

नदी पहाड़ काँटे और फूल
और धूल
और ऊबड़-खाबड़ रास्ते
सब सच ने जाने हैं

झूठ तो
समान एक आसमान में उड़ता है
और उतर जाता है
जहाँ चाहता है

क्रमश: बदली है
झूठ ने सवारियाँ

आज तो वह सुपरसॉनिक पर है

और सच आज भी
पाँव-पाँव चल रहा है

इतना ही हो सकता है किसी-दिन
कि देखें हम
सच सुस्ता रहा है
थोड़ी देर छाँव में
और

सुपरसॉनिक किसी झँझट में पड़कर
जल रहा है