भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वरदान / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:49, 22 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=नीहार / महादेवी वर्मा }} <poem> ...)
तरल आँसू की लड़ियाँ गूँथ
इन्हीं ने काटी काली रात,
निराशा का सूना निर्माल्य
चढ़ाकर देखा फीका प्रात।
इन्हीं पलकों ने कंटक हीन
किया था वह मारग बेपीर,
जहाँ से छूकर तेरे अंग
कभी आता था मंद समीर!
सजग लखतीं थी तेरी राह
सुलाकर प्राणों में अवसाद;
पलक प्यालों से पी पी देव!
मधुर आसव सी तेरी याद।
अशन जल का जल ही परिधान
रचा था बूँदों में संसार,
इन्हीं नीले तारों में मुग्ध
साधना सोती थी साकार
आज आये हो हे करुणेश!
इन्हें जो तुम देने वरदान,
गलाकर मेरे सारे अंग
करो दो आँखों का निर्माण!