भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादशाह मैकबैथ / गिरिराज किराडू
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिराज किराडू }} {{KKCatKavita}} <poem> '''(कवि अरूण कमल के लिय...)
(कवि अरूण कमल के लिये)
क्या हुआ बैंको के बेटे का शेक्सपीयर हमें नहीं बताता – कुछ समझे बादशाह?
उसकी कोई दिलचस्पी नहीं चुड़ैलों के बताये भविष्य में,
तुम्हें कुछ ख़बर भी है कौन बनेगा बादशाह तुम्हारे बाद?
जिस खंज़र ने डरा दिया था तुम्हें उसकी मूठ बर्नम की लकड़ी से तो नहीं बनी थी?
गौर से देखा था तुमने जब हवा में लहरा रहा था वह?
देखो, बादशाह देखो, तुम्हारी त्रासदी मृतक लिख रहे हैं
हिरण चुराने वाला शेक्सपीयर तो उनका लिपिक भर है