भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्याकुल संसार / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:53, 26 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=धार के इधर उधर / हरिवंशर…)
व्याकुल आज है संसार!
प्रेयसी को बाहु में भर
विश्व, जीवन, काल गति से
सर्वथा स्वच्छंद होकर
आज प्रेमी दे न सकता, हाय, चुंबन-प्यार
व्याकुल आज है संसार।
गोद में शिशु को सुलाकर
विश्व, जीवन, काल गति का
ज्ञान क्षण भर को भुलाकर
मां पिला सकती नहीं है, हाय, पय की धार।
व्याकुल आज है संसार।
विगत सुख-सुधियाँ जगाकर
विश्व, जीवन, काल गति से
एक पल को मुक्ति पाकर
व्यक्त कर सकता न विरही, हाय, उर-उद्गार।
व्याकुल आज है संसार।