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तूत के अंगार / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
जब कविताएँ वजह बनीं
मेरे निष्कासन की
मैंने और ज़्यादा प्यार किया
जोख़िम से
अवसाद और विद्रोह के लम्हों में
मैंने मारी आग में छलांग
और जिया
शायर होने की क़ीमत अदा करते हुए
मुझ तक आने के रास्ते में बिछे हैं
तूत के दहकते अंगार
कौन आता नंगे पाँव
मेरी वेदना के पास