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ख़त-एक / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
हे पुत्री!
जाने कितने युग
यह कायर पिता
तुम्हारा वध करता रहा
अपने ही लहू की
सच्चाई से डरता रहा
हे पुत्री!
रखना याद
जब कभी तुम
इस जनक से
मिलने आओगी
इसे संपूर्ण प्राणों से
अपनी ही
प्रतीक्षा करने पाओगी